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क्या 2019 से पहले गुजरात दंगे के नाम पर सियासी ज़मीन तैयार करने की कोशिश हो रही है? ये सवाल इसलिए क्योंकि कल एक किताब रिलीज़ होगी जिसका नाम है 'द सरकारी मुसलमान'. लेकिन इस किताब की रिलीज़ से पहले सियासी धमाका हो चुका है. भारतीय सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरूद्दीन शाह की इस किताब में दावा किया गया है कि 2002 के गुजरात दंगे में वहां के प्रशासन ने ढीला रवैया दिखाया. सेना के जवान 24 घंटे तक एयरपोर्ट पर फंसे रहे. सेना को वाहन देने में देरी की गई. अगर ऐसा नहीं होता तो 300 लोग बच जाते. लेकिन क्या वाकई ये पूरा सच है? क्योंकि नानावती कमीशन को दिए गए एफिडेविट में साफ कहा गया है कि सेना को वहां पहुंचते ही वाहन दे दिया गया था और बिना देरी के सेना ने कार्रवाई शुरु कर दी थी. उस वक्त के अखबारों में भी यही दावा किया गया है. तो फिर किताब में इस उल्टे दावे का क्या मतलब है? और क्यों कांग्रेस इसे मुद्दा बनाने में जुट गई है?
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