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कल नफ़रत की आड़ में इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या ने बुलन्दशहर को तारीख़ के काले पन्नों पर जगह दे दी. सैकड़ों लोगों की भीड़ ने एक पुलिस इंस्पेक्टर की मॉब लिंचिंग की. 27 लोगों के ख़िलाफ़ नामजद FIR दर्ज हुई और 50 से 60 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ भी मामला दर्ज हुआ. लेकिन नतीजा क्या निकला? महज चार लोगों को अब तक ग़िरफ़्तार किया जा सका है और मुख्य आरोपी योगेश राज अब तक फ़रार है. क्या उत्तर प्रदेश में यही क़ानून का राज है? गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी की ये तस्वीर पहली नज़र में भले ही भीड़ के उग्र होने का मामला नज़र आता हो, लेकिन ये मामला इतना सामान्य नहीं. कुछ दिन पहले जिस सम्मेलन के लिए क़रीब दस हज़ार इस्लाम धर्म के अनुयायी जमा हुए थे,उसके समापन के बाद लाखों की तादाद में इन्हें इसी नैशनल हाईवे से लौटना था जहाँ हिंसा भड़की. तो क्या ये बलवा किसी बड़ी साज़िश का हिस्सा था? बुलन्दशहर का बलवा सामने आने के बाद इंसानियत में यक़ीन करने वालों के रौंगटे खड़े होना लाज़िमी है.
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