चुनाव में नेताओं की ज़बान हर रोज़ नए मक़ाम छू रही है. कभी कोई किसी के अब्बाजान को याद कर रहा है, तो कोई आतंकी हमले को चुनावी साज़िश बता रहा है. हद तो तब हो गयी जब एक सज्जन प्रधानमंत्री को मार कर पाकिस्तान में फेंक देने की बात करने लगे. ये हाल तब है जब सुप्रीम कोर्ट की सख़्ती के बाद चुनाव आयोग लगातार कार्रवाई कर रहा है ? बदज़बानी और विवादित बयान वालों पर कभी 48 घंटे तो कभी 72 घंटे का बैन लग रहा है. लेकिन लौट कर फिर वही ढाक के तीन पात. नेता अपनी ग़लत बयानी से बाज़ नहीं आ रहे. राजनीतिक प्रतिद्वंदिता जैसे निजी दुश्मनी में तब्दील हो गयी हो. चुनावी राजनीति में नेताओं की लगातार बदजुबानी से कई सवाल खड़े हो रहे हैं, जो आज हम पूछेंगे. हम तो पूछेंगे कि क्या नेताओं के समर्थक भी उनकी बदज़बानी पसंद करते हैं?
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