
ये किस्से हैं लखनऊ के. लखनऊ के नवाबों के किस्से नहीं, वहां के अवाम के किस्से. वहां की तहजीब के किस्से और उस लखनवी विरासत के किस्से, जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी संजोया गया है. इन किस्सों को शब्दों में ढालकर किताब की शक्ल देने वाले हैं हिमांशु बाजपेयी. न सिर्फ लेखक हैं बल्कि दास्तानगो भी. वो न सिर्फ किस्से लिखते हैं, बल्कि बड़े पुरजोर अंदाज में सुनाते भी हैं. पांच भागों में बनी इस श्रृंखला की आज पेश है दूसरी कड़ी. नाम है- “किस्सा लखनऊ का.” सुना रहे हैं खुद लेखक हिमांशु बाजपेयी. उनकी किताब इसी साल राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है.
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