सुजाता ने इस पुस्तक में ग़रीबी, पितृसत्तात्मकता और भेदभाव की सीधी, सपाट और साफ तस्वीर दिखाई है. किताब की ख़ास बात यही है कि इसकी किस्सागोई कहीं से भी पाठकों को नाटकीय नहीं लगती है.
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