मुकेश ने बताया कि 1990 में किशनगंज में मौजाबाड़ी घाट पर एक लाश को अधजला देखा, तो वहीं से मन में प्रण लिया कि आज से वह हर उस लाश को दाह संस्कार करने का कार्य करेंगे जिसका कोई नहीं है.
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